A version of this article published in Dainik Bhaskar on March 10, 2017
Road to Solve Increasing Water Conflicts in India
पाकिस्तान के साथ सिंधु नदी जल विवाद को अगर भू-राजनीतिक दृष्टिकोण से परे देखें तो यह देश में चल रहे और कई जल स्रोतों से जुड़े विवादों में एक कड़ी ही होगा|
पिछले एक वर्ष में ही कर्नाटक और तमिलनाडु के बीच कावेरी नदी के जल बँटवारे, पंजाब और हरियाणा के बीच सतलज-यमुना लिंक नहर व पंजाब और राजस्थान के बीच सतलज, रवि व ब्यास से पानी देने को लेकर विवादों की ख़बरें सुर्ख़ियों में हैं| इसके अलावा ओडीशा और छत्तीसगढ़ के बीच महानदी को लेकर तना-तनी पिछले दिनों उच्चतम न्यायालय तक पहुंची है| केन-बेतवा नदी इंटरलिंकिंग और गोदावरी नदी से जुड़े विवाद भी जब तब सर उठा लेते हैं|
इन सभी मुद्दों की जड़ में दो मुख्य बिंदु हैं| पहला, नदियों पर बनाए गए बड़े बांधो द्वारा उपजी सिंचाई क्षमता का समभाव या कारगर तरीके से बँटवारा ना होने के कारण अक्सर नदी के ऊपरी और निचले क्षेत्रों में रहने वालों का आपसी टकराव हो जाता है| दूसरा, भू-जल स्रोत जो कभी हरित क्रांति के कारक साबित हुए थे, आज खतरनाक स्थिति तक दोहन कर लिए गए हैं| इससे नदी जैसे जलस्रोतों पर दबाव बढ़ा है।
ये दोनों बातें आज और ज्यादा विलक्षण हो उठी हैं क्योंकि बढ़ती अर्थव्यवस्था के साथ देश में जल का कृषि उपयोग के साथ शहरी उपयोग भी बहुत तेज़ी से बढ़ा है|
ऐसे में अंतर-राज्यीय विवादों को निपटने के लिए और राष्ट्रीय स्तर पर जल प्रबंधन हेतु सरकार द्वारा गठित मिहिर शाह समिति के सुझाव उपयोगी हो सकते हैं| इन सुझावों की अहम कड़ी जल सम्बन्धी आंकड़ों का बेहतर उपयोग है| जब तक हम आंकड़ों का बारीकी से इकट्ठा और अध्ययन कर ये नहीं समझ पाएंगे की एक क्षेत्र में कितना पानी उपलब्ध है, कितना उपयोग किया जा रहा है, और किसके द्वारा उपयोग किया जा रहा है, किसी सफल जल प्रबंधन रणनीति का शुरू होना भी मुमकिन नहीं है|
इस रणनीति के दूसरे कदम पर सतही जल और भू-जल का अलग अलग प्रबंधन करने की चली आ रही परिपाटी को बंद कर, एक ऐसी केंद्रीय एजेंसी का गठन करना होगा जो जल संसाधनों को लेकर पूरक दृष्टिकोण अपनाने में सक्षम हो| तभी हम देश में पानी को लेकर हो रहे झगड़ो को सुलझा पाएंगे|